Monday 31 August 2009

रूचि सुबह उठी तो देखा की कामवाली बाई नही आई है माँ बर्तन धो रही है रूचि ने कहा "क्या माँ बाई को महीने में तीन चार छुट्टियाँ लेने की आदत हो गई है तुमने मुझे जगा दिया होता ,ख़ुद इतना काम कर रही हो कही बीमार न हो जाओ "माँ ने प्यार से कहा "तुम कॉलेज से थक जाती हो ,तीन जनों के लिए क्या काम होता है जो मैं थक जाउंगी बेटी चाय फ्लास्क में है पी लो "रूचि हाथ मुह धोकर चाय पीने लगी ,रूचि ने देखा कि पिताजी ऑफिस के लिए तैयार हो चुके है रूचि भी नहाकर तैयार हो गई
पिताजी ऑफिस के लिए निकलते हुवे रूचि को त्रिपाठी जी के यहाँ जाने की एक और बार याद दिलाई माँ ने हाथो को साफ़ करते हुवे कहा "तुम्हारे पापा को अपनी फ़िक्र उतनी नही जितनी अपने मित्र की है तुम जरुर चले जाना भूलना नही "रूचि ने हां कहकर बहार निकल पड़ी
क्लास में रोज की ही तरह हलचल थी ,इतने में नए सर हरेश जी अन्दर दाखिल हुवे उनका पडाने का अंदाज सबको पसंद आया पर लोगो से ऐसे बात कर रहे थे जैसे वोह कोई ताना शाह है और विद्यार्थी उनके सेवक
शाम को रूचि त्रिपाठी जी के घर गई रूचि को देखते ही दोनों पति-पत्नी का चेहरा खिल गया वे दोनों रूचि को बेटी की तरह मानते है रूचि ने कहा "कैसे है अंकल -आंटी ,आदित्य भैय्या की क्या ख़बर है ?"

No comments:

Post a Comment