Tuesday 1 September 2009

रूचि को लगा की त्रिपाठी कुछ उदास है आदित्य अपने पापा बहुत करीब थादोनों मिलकर वाकिंग के लिए जाते थे,आदित्य के साथी उनके भी साथी थे वे उनके साथ हमउमर जैसे घुलमिल जाते थे त्रिपाठी का सारा जीवन आदित्य के इर्दगिर्द बुना हुवा था
आदित्य के विदेश जाने के बाद उनकी जिंदगी रुक सी गई पैसे तो बहुत जमा होगये पर खुशी कम हो गई "अंकल कैसे है ?" उन्होंने कहा ,"मैंने एक निर्णय लिया है तुमसे उस बारे में बात करना चाहता हूँ "इतने में उनकी पत्नी भी आकर वही एक कुर्सी पर बैठ गई त्रिपाठी जी ने अपनी बात जारी करते हुवे कहा "बेटा मैं शरण नाम के एक अनाथालय खोलना चाहता हूँ अनाथ बच्चो की परवरिश करना चाहता हूँ आदित्य को मेरी जरुरत नही है इनको मेरी जरुरत है उनको जिस प्यार और देखरेख की जरुरत है मैं दूँगा "रूचि ने देखा की उनकी पत्नी की आँखों से आंसू बह रहे थे जो के थे रूचि ने कहा "अंकल आपने बहुत अच्छा निर्णय लिया है मैं भी इस कार्य में साथ दूंगी "
घर वापस आते समय रूचि के आंसू रुक नही रहे थे उसने त्रिपाठी जी को मन ही मन में कोटि -कोटि प्रणाम किया

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