Friday 25 September 2009

जिंदगी कई रास्तो से गुजर कर मंजिलो तक पहुंचती है बचपन कैसे गुजरता है ,हमें याद नही रहता ,हमारे बचपन के किस्से हमारे परिवार की जुबानी हम सुनते है बीस साल के बाद जो जिंदगी हमें गुजारनी होती है उसका मूल्यांकन जिसने ठीक तरीके से कर लिया तो मानो हमारी बाकी की जिंदगी सही तरीके से चलती है इसके लिए क्या किया जाना चाहिए ?मेरे ख़याल से अच्छे दोस्त ,दोस्त जैसे माँ-बाप,जिनके जिंदगी में होते है वे बहुत ही भाग्यशाली होते है
हमें सबकी सुननी चाहिए पर जो हमारे दिल-दिमाग को सही लगता है उसे ही करनी चाहिए जिंदगी में अगर किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़े तो धीरज रखना और बहुत कम शब्दों का प्रयोग करना बहुत जरुरी है शब्दों को कभी वापस नही लिया जा सकता शब्दों के द्वारा ही रिश्ते बनते बिगड़ते है मन साफ़ है तो किसी से कोई डर नह्ही लगता है शांत मन चेहरे को और भी सुंदर बना देता है
अपने मंजिल को तय करना और उसको साकार करना जिंदगी का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है ऐसे मंजिले बनावो जिसमे तुम्हे पहुँचने में अधिक परिश्रम न लगे ये नही की मंजिले तय करते करते हम ही ख़तम न होजायेजैसे अगर तुम्हे संगीत पसंद है तुम उस क्चेत्र में कुछ हासिल करना चाहते हो ,तुम्हारा गला साथ न दे रहा हो तो तुम्हे इस राह पर आगे बढने के लिए दिक्कत होगी निराश होने की कोई बात नही तुम वीणा,वैओलिन ,की-बोर्ड ,तबला ,सितार ,आदि में माहिर बन कर अपनी मंजिल पासकते हो
---सा-शेष----

Tuesday 8 September 2009

श्रद्धांजलि -वई.एस.आर .

हमारे आदरणीय मुख्यमंत्रीजी का दर्दनाक मृत्यु मेरे मन में ऐसा प्रभाव डाला की उससे बाहर निकलना बहुत कठिन है मन एकदम उदास होगया है उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली है की वे सही मायनों में गांधीजी,नेहरूजी,शास्त्रीजी,इन्दिरागान्धिजी,राजीवगांधी ,के सही मायनों में प्रतिनिधि थे उनकी जगह कोई नही लेसकता
उनकी कर्मभूमि हमेशा गावों में ही थीगावों में जाकर उनके बीच अधिक से अधिक समय बताने की उनकी आदत थी जब वे इस पद पर नह थे और जन साधारण के बीच रहकर उनसे बातचीत करते थे तब कई लोगो का विचार था की यह सब उनका इलेक्शन में जीतने का व्यूह है और जीतने के बाद यह सब छोड़ देंगे ,पर उनका जीत के बाद भी यही रवैय्या रहा जिसे देख कर सभी दंग रह गए उन्होंने जो कहा वही किया ,वे अगर किसीको वादा करते थे तो पूरा करते थे
समाज सेवा के कार्यक्रमों में ही अधिक रूचि रखते थे किसी फिल्मी मनोरंजन के फंक्शन्स में भाग लेना पड़ता तो उनके चेहरे पर उत्सुकता नही दिखती थी वे सही मायनों में एक भारतीय नेता थे जो की भारत के किसानो ,गरीब नारियो ,बीमारों की जरूरतों को अधिक प्रधानता देते थे वे एक बहुत ही सरल और सादा व्यक्तित्व रखते थे छोटे लफ्जों में ,अपने विचारों को व्यक्त करते थे उनको भूल पाना बहुत कठिन है वे हमेशा हमारे दिल में रहेंगे

Tuesday 1 September 2009

रूचि को लगा की त्रिपाठी कुछ उदास है आदित्य अपने पापा बहुत करीब थादोनों मिलकर वाकिंग के लिए जाते थे,आदित्य के साथी उनके भी साथी थे वे उनके साथ हमउमर जैसे घुलमिल जाते थे त्रिपाठी का सारा जीवन आदित्य के इर्दगिर्द बुना हुवा था
आदित्य के विदेश जाने के बाद उनकी जिंदगी रुक सी गई पैसे तो बहुत जमा होगये पर खुशी कम हो गई "अंकल कैसे है ?" उन्होंने कहा ,"मैंने एक निर्णय लिया है तुमसे उस बारे में बात करना चाहता हूँ "इतने में उनकी पत्नी भी आकर वही एक कुर्सी पर बैठ गई त्रिपाठी जी ने अपनी बात जारी करते हुवे कहा "बेटा मैं शरण नाम के एक अनाथालय खोलना चाहता हूँ अनाथ बच्चो की परवरिश करना चाहता हूँ आदित्य को मेरी जरुरत नही है इनको मेरी जरुरत है उनको जिस प्यार और देखरेख की जरुरत है मैं दूँगा "रूचि ने देखा की उनकी पत्नी की आँखों से आंसू बह रहे थे जो के थे रूचि ने कहा "अंकल आपने बहुत अच्छा निर्णय लिया है मैं भी इस कार्य में साथ दूंगी "
घर वापस आते समय रूचि के आंसू रुक नही रहे थे उसने त्रिपाठी जी को मन ही मन में कोटि -कोटि प्रणाम किया

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